Sunday, January 22, 2012

MANTRA RAMAYAN


1.   राजिवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुख दायक।। --------------------- विपत्ति  नाश के लिये
2.   जौ प्रभु दीनदयालु कहावा। आरती हरन बेद जसु गावा।।      --------------------- संकट  नाश के लिये
     जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
     दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।

3.   मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक।। ----------------    रक्षा रेखा मन्त्र
4.   हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू।। --------------- कठिन  क्लेश नाश के लिये
5.   सकल बिघ्न ब्यापहि नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही।। ----------------    विघ्न नाश के लिये
6.   जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।।  ----------------    खेद नाश के लिये
7.   जय रघुबंस बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृसानु।। ---महामारी हैजा शीतला आदि का प्रभाव न हो
8.   दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।। -----उपद्रवो व विविध रोगों की शान्ति के लिये
9.   हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।  ---------- मस्तिष्क पीड़ा दूर करने के लिये
10.  नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।। -------- विष का प्रभाव शान्त करने के लिये
11.  नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।  --------  अकाल मृत्यु निवारण के लिये
     लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट।।
12.   प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।     -------- भूत को भगाने के लिये
   
  जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।
13.    स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।। ------------- नजर  झाड़ने के लिये
14.    गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।       ------ खोई वास्तु को प्राप्त करने के लिये
15.   बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई।।  ----------- जीविका प्राप्ति के लिये
16.    जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।। ------- सुख व लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
   
    तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।
17.    प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान।   -----------  पुत्र प्राप्ति के लिये
     सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।
18.    अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद घन दारिद दवारि के।।  -------- द्रारिद्रय नाश के लिये
19.     जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख संपति नाना बिधि पावहिं।।------  संपत्ति के लिये
20.     साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।   --------  ऋद्धि सिद्धि प्राप्ति के लिये
21.    सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।  -----    सब सुख प्राप्ति के लिये
22.     भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरु नारि।-----------  मनोरथ सिद्धि के लिये
   
   तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करिहि त्रिसिरारि।।
23.     भुवन चारि दस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।-----------कुशल क्षेम के लिये
24.    पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।। ------------------- मुकदमा जीतने के लिये 
25.     कर सारंग साजि कटि भाथा। अरि दल दलन चले रघुनाथा।। --------------------- शत्रु के पास जाने के लिये
26.    गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।--------------------- शत्रु से मित्रता के लिये
27.    बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप बिषमता खोई।।-------------------------- शत्रुता नाश के लिये
28.   तेहिं अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयसु भृगुकुल कमल पतंगा।। ----------- शास्त्रार्थ मे विजय पाने के लिये
29.   तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै। ---------------------------- विवाह के लिये (प्रथम रीति)
      माँडवी श्रुतिकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि के।।
30.    कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना।।  ---------------- विवाह के लिये (दूसरी रीति)
    
  पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।
    
  कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।
31.    जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संहेहू।।---------------------- आकर्षण के लिये
32.    रामकृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।   ---------------निन्दा दूर करने के लिये
33.    गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई।।  --------------- विद्धया प्राप्ति के लिये
34.    सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं। ------------------- उत्सव के लिये (कुशल रहे )
   
   तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।
35.    चढ़ि रथ सीय सहित दोउ भाई। चले हृदयँ अवधहि सिरु नाई।।---- यात्रा की सफलता के लिये (चलते समय )
36.   सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।। ---------प्रेम बढ़ाने के लिये
37.    मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहि अवसर सहाय सोइ होऊ।। -------------- कातर की रक्षा के लिये
38.    राम चरन दृढ़ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग।  ----- भगवत चिंतन करते हुए आराम से मरने के लिये
    
  सुमन माल जिमि कंठ ते गिरत न जानइ नाग।
39.    ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।। --------------- विचार शुद्धि के लिये
40.    रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उडावनिहारी।।  ---------------------- संशय नाश के लिये
41.    अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमामंदिर दोउ भ्राता।। ------------ अपराध क्षमा कराने के लिये
42.    छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।। ----------- ज्ञान प्राप्ति के लिये
43.    अस अभिमान जाइ जनि भोरे। मैं सेवक रघुपति पति मोरे।। -------------- भक्ति प्राप्ति के लिये
44.    सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू।। ---- श्री हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिये
45.    गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी।। ----- उमाशंकर जी को प्रसन्न करने के लिये
46.    सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। कालसर्प जनु चले सपच्छा।। --------- मोक्ष प्राप्ति के लिये
47.   नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम।    --------------श्री सीता राम जी के दर्शन के लिये
      लाजहिं तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम।।
48.    जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुना निधान की।।---- श्री सीताजी के दर्शन के लिये                               
49.    बंदउँ लछिमन पद जलजाता। सीतल सुभग भगत सुख दाता।।-------- सर्प भय दूर करने के लिये
50.    जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी।। ------- वशीकरण करने के लिये
51.    रंगभूमि जब सिय पगु धारी। देखि रूप मोहे नर नारी।।       ---------- मोहन करने के लिये
52.    सोइ जल अनल अनिल संघाता। होइ जलद जग जीवन दाता।। ------ वर्षा कराने के लिये
53.    जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।   --------- गणेश जी की प्रसन्ता के लिये
    
  करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।
54.    भगत बछल प्रभु कृपानिधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।। -----सहज स्वरूप दर्शन करने के लिये
55.    भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपा सिंधु सुख धाम।  ---------- भक्ति प्राप्ति करने के लिये
   
   सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।
56.     सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू।।-------हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिये
57.     जौं अनाथ हित हम पर नेहू। तौ प्रसन्न होइ यह बर देहू।। ---------  श्री राम जी के प्रत्यक्ष दर्शन के लिये
    
    जो सरूप बस सिव मन माहीं। जेहि कारन मुनि जतन कराहीं।।
    
   जो भुसुंडि मन मानस हंसा। सगुन अगुन जेहि निगम प्रसंसा।।
    
   देखहिं हम सो रूप भरि लोचन। कृपा करहु प्रनतारति मोचन।।
58.      धरि धीरजु एक आलि सयानी। सीता सन बोली गहि पानी।। -------- श्री राम जी की पराभक्ति के लिये
59.      आसुतोष तुम्ह अवढर दानी। आरति हरहु दीन जनु जानी।। ------- शंकर जी की प्रसन्नता के लिये
60.   मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी।। ­­­­­­­­­­­­­­­--------- मंगल  के लिये
61.   मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती।। ------- जीवन सुधार के लिये
62.    सुनु खगपति यह कथा पावनी। त्रिबिध ताप भव भय दावनी।। --- तिजारी बुखार दूर करने के लिये (प्रथम रीति)
63.    त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन। कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन।। --- तिजारी बुखार दूर करने के लिये (दूसरी रीति)
64.    जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। ---------- श्री गिरिजा की प्रसन्नता के लिये
65.   गंग सकल मुद मंगल मूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला।। -------- गंगा जी की प्रसन्नता के लिये
66.   मामवलोकय पंकज लोचन। कृपा बिलोकनि सोच बिमोचन।। --------------- कृपा दृष्टि के लिये
67.   प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कौसलपुर राजा।। ----- यात्रा तथा उद्धोगकी सहायता के लिये (प्रवेश के समय )
68.    जय सच्चिदानंद जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन।। --------कामवासना नाश के लिये
69.     मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर। ------------------- भव भीर नाश के लिये
    
   अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर।।
70.    महावीर बिनवउँ हनुमाना। राम जासु जस आप बखाना।। ------------ कर्ज से छुटकारा पाने के लिये
       पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।
       कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।

71.    जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा।। -------------- शत्रु नाश के लिये
72.    राम कृपाँ नासहि सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संयोगा।। -------------- रोग नाश के लिये
73.    हरि हर पद रति मति न कुतरकी। तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुवर की।।-------- कथा मे श्रद्धा बढाने के लिये
74.    मंत्र महामनि बिषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के।। --------दुर्भाग्य को दूर करने के लिये
75.    जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी।।---------परिक्षा मे पास होने के लिये
       मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती।।
76.    सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग। --------------- स्नान फल के लिये
       लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।
77.    भरत चरित करि नेमु तुलसी जो सादर सुनहिं।   ------------ विरक्ति के लिये
       सीय राम पद पेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।
78.    राम राज बैंठें त्रेलोका। हरषित भए गए सब सोका।।  ------- शोक दूर करने के लिये
79.    सीता राम चरन रति मोरें। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें।। -------- भक्ति की वृध्दि के लिये 
80.    उर अभिलाष निंरंतर होई। देखअ नयन परम प्रभु सोई।। --------- भगवत दर्शन की व्याकुलता के लिये
       अगुन अखंड अनंत अनादी। जेहि चिंतहिं परमारथबादी।।
81.   राम राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पाप पुंज समुहाहीं।। -------- पाप नाश के लिये
82.   मन करि विषय अनल बन जरई। होइ सुखी जौ एहिं सर परई।। ---------- वैराग्य के लिये
83.     सुनहु देव सचराचर स्वामी। प्रनतपाल उर अंतरजामी।। ---------- गुप्त मनोरथ सिद्धि के लिये
       मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें।।
84.   भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपा सिंधु सुख धाम।     ----------- भक्ति प्राप्ति के लिये 
       सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।
85.    करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा।।---------मोहित करने के लिये 
86.    पाहि पाहि रघुबीर गोसाई। यह खल खाइ काल की नाई।। ------- भय से बचने के लिये
87.    स्वयं सिद्ध सब काज नाथ मोहि आदरु दियउ। ------------- कार्य सिद्धि के लिये
       अस बिचारि जुबराज तन पुलकित हरषित हियउ।।
88.    राम चरित चिंतामनि चारू। संत सुमति तिय सुभग सिंगारू।। ------- आभूषण प्राप्ति के लिये
89.    जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।    ------- यगोपवीत सुरक्षित रखने के लिये
        पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।

90.    रामायण सुरतरु की छाया। दुःख भये दूर निकट जो आया।। ------दुख दूर करने के लिये  

MANTRA RAMAYAN


1.   राजिवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुख दायक।। ---------------------      विपत्ति  नाश के लिये
2.   जौ प्रभु दीनदयालु कहावा। आरती हरन बेद जसु गावा।।      ---------------------       संकट  नाश के लिये
     जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
     दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।

3.   मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक।। ------------------------    रक्षा रेखा मन्त्र
4.   हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू।। ----------------------     कठिन  क्लेश नाश के लिये
5.   सकल बिघ्न ब्यापहि नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही।। -------------------------    विघ्न नाश के लिये
6.   जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।।  -------------------------    खेद नाश के लिये
7.   जय रघुबंस बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृसानु।। ----------------------     महामारी हैजा शीतला आदि का प्रभाव न हो
8.   दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।। -------------------------     उपद्रवो व विविध रोगों की शान्ति के लिये
9.   हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।     ----------------------       मस्तिष्क पीड़ा दूर करने के लिये
10.  नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।। --------------------       विष का प्रभाव शान्त करने के लिये
11.  नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।      ---------------------------------      अकाल मृत्यु निवारण के लिये
     लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट।।
12.   प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।     ------------------------------------      भूत को भगाने के लिये
   
  जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।
13.    स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।। ----------------------       नजर  झाड़ने के लिये
14.    गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।       -------------------- --        खोई वास्तु को प्राप्त करने के लिये
15.   बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई।।  ---------------------------        जीविका प्राप्ति के लिये
16.    जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।   -----------------------        सुख व लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
   
    तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।
17.    प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान।        ---------------------------------        पुत्र प्राप्ति के लिये
     सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।
18.    अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद घन दारिद दवारि के।।  ----------------------     द्रारिद्रय नाश के लिये
19.     जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख संपति नाना बिधि पावहिं।।-----------------------    संपत्ति के लिये
20.     साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।   ----------------------------  ऋद्धि सिद्धि प्राप्ति के लिये
21.    सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।  -------------------     सब सुख प्राप्ति के लिये
22.     भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरु नारि।        ------------------------------    मनोरथ सिद्धि के लिये
   
   तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करिहि त्रिसिरारि।।
23.     भुवन चारि दस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।  ---------------------------      कुशल क्षेम के लिये
24.    पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।। ------------------------------ मुकदमा जीतने के लिये 
25.     कर सारंग साजि कटि भाथा। अरि दल दलन चले रघुनाथा।। ------------------------------- शत्रु के पास जाने के लिये
26.    गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।। --------------------------------- शत्रु से मित्रता के लिये
27.    बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप बिषमता खोई।।     -------------------------------- शत्रुता नाश के लिये
28.   तेहिं अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयसु भृगुकुल कमल पतंगा।। --------------------------- शास्त्रार्थ मे विजय पाने के लिये
29.   तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै।         ------------------------------ विवाह के लिये (प्रथम रीति)
      माँडवी श्रुतिकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि के।।
30.    कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना।।  ---------------------------------- विवाह के लिये (दूसरी रीति)
    
  पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।
    
  कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।
31.    जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संहेहू।। -------------------------------- आकर्षण के लिये
32.    रामकृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।     ---------------------------------निन्दा दूर करने के लिये
33.    गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई।।  ----------------------------------- विद्धया प्राप्ति के लिये
34.    सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।            ----------------------------------- उत्सव के लिये (कुशल रहे )
   
   तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।
35.    चढ़ि रथ सीय सहित दोउ भाई। चले हृदयँ अवधहि सिरु नाई।। -------------------------------- यात्रा की सफलता के लिये (चलते समय )
36.   सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।। ----------------------------------प्रेम बढ़ाने के लिये
37.    मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहि अवसर सहाय सोइ होऊ।। ----------------------------------- कातर की रक्षा के लिये
38.    राम चरन दृढ़ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग।   --------------------------------------- भगवत चिंतन करते हुए आराम से मरने के लिये
    
  सुमन माल जिमि कंठ ते गिरत न जानइ नाग।
39.    ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।। ---------------------------- विचार शुद्धि के लिये
40.    रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उडावनिहारी।।  --------------------------------------- संशय नाश के लिये
41.    अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमामंदिर दोउ भ्राता।। ----------------------------- अपराध क्षमा कराने के लिये
42.    छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।। ------------------------- ज्ञान प्राप्ति के लिये
43.    अस अभिमान जाइ जनि भोरे। मैं सेवक रघुपति पति मोरे।। ------------------------------- भक्ति प्राप्ति के लिये
44.    सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू।। --------------------------------- श्री हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिये
45.    गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी।। ------------------------------- उमाशंकर जी को प्रसन्न करने के लिये
46.    सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। कालसर्प जनु चले सपच्छा।। ------------------------------- मोक्ष प्राप्ति के लिये
47.   नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम।    ----------------------------------------श्री सीता राम जी के दर्शन के लिये
      लाजहिं तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम।।
48.    जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुना निधान की।।  ------------------------ श्री सीताजी के दर्शन के लिये                               
49.    बंदउँ लछिमन पद जलजाता। सीतल सुभग भगत सुख दाता।।    --------------------------- सर्प भय दूर करने के लिये
50.    जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी।। ------------------------ वशीकरण करने के लिये
51.    रंगभूमि जब सिय पगु धारी। देखि रूप मोहे नर नारी।।       --------------------------- मोहन करने के लिये
52.    सोइ जल अनल अनिल संघाता। होइ जलद जग जीवन दाता।। -------------------------- वर्षा कराने के लिये
53.    जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।   ------------------------------------ गणेश जी की प्रसन्ता के लिये
    
  करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।
54.    भगत बछल प्रभु कृपानिधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।। ------------------------------सहज स्वरूप दर्शन करने के लिये
55.    भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपा सिंधु सुख धाम।  --------------------------------------- भक्ति प्राप्ति करने के लिये
   
   सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।
56.     सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू।। -------------------------------हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिये
57.     जौं अनाथ हित हम पर नेहू। तौ प्रसन्न होइ यह बर देहू।।  ---------------------------  श्री राम जी के प्रत्यक्ष दर्शन के लिये
    
    जो सरूप बस सिव मन माहीं। जेहि कारन मुनि जतन कराहीं।।
    
   जो भुसुंडि मन मानस हंसा। सगुन अगुन जेहि निगम प्रसंसा।।
    
   देखहिं हम सो रूप भरि लोचन। कृपा करहु प्रनतारति मोचन।।
58.      धरि धीरजु एक आलि सयानी। सीता सन बोली गहि पानी।। --------------------------- श्री राम जी की पराभक्ति के लिये
59.      आसुतोष तुम्ह अवढर दानी। आरति हरहु दीन जनु जानी।। ------------------------------ शंकर जी की प्रसन्नता के लिये
60.   मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी।। ­­­­­­­­­­­­­­­------------------------------ मंगल  के लिये
61.   मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती।। ----------------------------- जीवन सुधार के लिये
62.    सुनु खगपति यह कथा पावनी। त्रिबिध ताप भव भय दावनी।। ----------------------------- तिजारी बुखार दूर करने के लिये (प्रथम रीति)
63.    त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन। कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन।। ---------------------- तिजारी बुखार दूर करने के लिये (दूसरी रीति)
64.    जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। ----------------------------- श्री गिरिजा की प्रसन्नता के लिये
65.   गंग सकल मुद मंगल मूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला।। -------------------------- गंगा जी की प्रसन्नता के लिये
66.   मामवलोकय पंकज लोचन। कृपा बिलोकनि सोच बिमोचन।। ---------------------------- कृपा दृष्टि के लिये
67.   प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कौसलपुर राजा।। ------------------ यात्रा तथा उद्धोगकी सहायता के लिये (प्रवेश के समय )
68.    जय सच्चिदानंद जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन।। -------------------कामवासना नाश के लिये
69.     मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर। ----------------------------------- भव भीर नाश के लिये
    
   अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर।।
70.    महावीर बिनवउँ हनुमाना। राम जासु जस आप बखाना।।      ---------------------------- कर्ज से छुटकारा पाने के लिये
       पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।
       कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।

71.    जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा।। ---------------------------------------- शत्रु नाश के लिये
72.    राम कृपाँ नासहि सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संयोगा।। -------------------------------------- रोग नाश के लिये
73.    हरि हर पद रति मति न कुतरकी। तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुवर की।।------------------------- कथा मे श्रद्धा बढाने के लिये
74.    मंत्र महामनि बिषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के।। --------------------------------- दुर्भाग्य को दूर करने के लिये
75.    जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी।।---------------------------परिक्षा मे पास होने के लिये
       मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती।।
76.    सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग। ------------------------------------- स्नान फल के लिये
       लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।
77.    भरत चरित करि नेमु तुलसी जो सादर सुनहिं।   --------------------------------------------- विरक्ति के लिये
       सीय राम पद पेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।
78.    राम राज बैंठें त्रेलोका। हरषित भए गए सब सोका।।  ------------------------------------- शोक दूर करने के लिये
79.    सीता राम चरन रति मोरें। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें।। -------------------------------- भक्ति की वृध्दि के लिये 
80.    उर अभिलाष निंरंतर होई। देखअ नयन परम प्रभु सोई।। ------------------------------- भगवत दर्शन की व्याकुलता के लिये
       अगुन अखंड अनंत अनादी। जेहि चिंतहिं परमारथबादी।।
81.   राम राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पाप पुंज समुहाहीं।। ---------------------------- पाप नाश के लिये
82.   मन करि विषय अनल बन जरई। होइ सुखी जौ एहिं सर परई।। -------------------------- वैराग्य के लिये
83.     सुनहु देव सचराचर स्वामी। प्रनतपाल उर अंतरजामी।। ----------------------------------- गुप्त मनोरथ सिद्धि के लिये
       मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें।।
84.   भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपा सिंधु सुख धाम।     -------------------------------------- भक्ति प्राप्ति के लिये 
       सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।
85.    करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा।।----------------------------------------मोहित करने के लिये 
86.    पाहि पाहि रघुबीर गोसाई। यह खल खाइ काल की नाई।। ----------------------------- भय से बचने के लिये
87.    स्वयं सिद्ध सब काज नाथ मोहि आदरु दियउ।           ---------------------------- कार्य सिद्धि के लिये
       अस बिचारि जुबराज तन पुलकित हरषित हियउ।।
88.    राम चरित चिंतामनि चारू। संत सुमति तिय सुभग सिंगारू।। --------------------- आभूषण प्राप्ति के लिये
89.    जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।    -------------------------------------- यगोपवीत सुरक्षित रखने के लिये
        पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।

90.    रामायण सुरतरु की छाया। दुःख भये दूर निकट जो आया।। --------------------------- दुख दूर करने के लिये